जय श्री कृष्णा 🙏
गणगौर पूजन की परंपरा हमारी सनातन संस्कृति है। ऐसी मान्यता है कि होली के दूसरे दिन मां गौरजा सोलह दिनों के लिये अपने पीहर आती है ,सोला दिन बाद ईसरजी गौरां बाई को लेने आते हैं,व दो दिन रूक कर अपने साथ ले जाते हैं।उन्ही सोलह दिनों में गणगौर पूजन की परंपरा है।
गणगौर पूजन के लिये सर्व प्रथम हमें होली की छाई(राख)की व गाय के गौबर की आवश्यकता होती है।होली मंगलाने के बाद दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके होली की छाई व गोबर दोनों की सोलह सोलह पिंडोली बनाई जाती है।कुल बत्तीस पिंडोली होती है। इन्हें एक छाबड़ी में रख देते हैं। फ़िर दिवार पर प्लेन पेपर लगाकर उस पर गोबर सें गौर मांडी जाती है। उसमें मोली लगाई जाती है,सोलह कुंकुम की,सोलह काजल की टीक्की लगाई जाती है। जितनी पूजने वाली होती है, वो अपनी अपनी टिक्की रोज़ सुबह गौर पूजते समय पहले लगाती है।अपने कुंकुम का तिलक करें।कांसी के बाटके या थाली में छाछ लेकर,चांदी के छल्ले सें गौर पूजते हैं। पहले दिन छल्ले सें फिर ठंण्डा खाते हैं तब तक दूब व छल्ला साथ लेकर,और बासीड़ा के बाद फूलों के साथ छल्ला लेकर पूजते हैं।
सबसें पहले गौर को उठाने का गीत,
फुलड़ा बीनणें का बाड़ी का गीत,
ऊंचो चंवरो चोकुंटो या कोट चिणाईयो राजा कोट चिणाय... दोनों में से कोई एक
चूनड़ी
टिक्की
कांगसियो
बधावो
एलखेल
गीत गाने के बाद थाली में नीर(छाछ)रहता है उसें बाहर जाकर गोल गोल घूमते हुए बहा देते हैं व एलखेल गीत गाते हैं। रोजाना ऐसें ही पूजकर दूब गौर माता को चढ़ा देते हैं।इसें गौर का दायजा बोलते हैं।एक अलग छाबड़ी में रखते जाते हैं।जब अंतिम दिन गौर की भोलावणी करते हैं तब सारा दायजा कुंए या तालाब में विसर्जित कर देते हैं।
गौर पूजने के पहले पानी भी नहीं पिते।
बासीड़ा धोकते हैं उस दिन दोपहर में पहले वाला पेपर हटाकर दायजा की छबड़ी में रख देते हैं।दूसरा नया पेपर लेकर उस पर सुन्दर से ईसर,गौर,कान्हीराम,चांद,सूरज,कांगसियो,सेवरा दो,माचो,जंवारा आदि मांडकर वहीं दिवार पर चिपका देते हैं।दोपहर को ही अच्छी साफ़ मिट्टी (जिसें लक्ष्मी बोलते हैं)लाकर दो मिट्टी के पालसिया में जंवारा बिजते हैं।इसके लिये गेहूं,जौ,थोड़े थोड़े मूंग,चावल,बाजरी,चणा व ज्वार या सिर्फ गेहूं जौ ही लेकर रखें।पालसिया में अंदर साखियां बनायें,मौली बांधें।सात टिक्की कुंकुम की लगायें। पास में पानी का बर्तन भी रखें।अब मिट्टी डालकर पानी का छिड़काव करें।फिर गेहूं,जौ छिड़कें।फिर मिट्टी डालें, पानी छिड़कें व गेहूं,जौ डालें।इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराएं।जंवारा दो कुण्डी बोते हैं एक ईसरजी की एक गौरां बाई की।जंवारा बाते समय गीत भी गाये जाते हैं।दो ,तीन दिन जंवारा को ढककर रखते हैं ताकि गर्माहट सें जल्निदी उग जाये।नियमित रूप सें पानी दिया जाता है।
जंवारा को सूरज नहीं दिखाते इसलिये सूरज सें छुपाकर रखा जाता है
इसी दिन सें गौर का बंन्दोरा शुरू होता है।सुबह जब गौर पूजते हैं तभी आज सें ही सारे गीत होने के बाद कहानी भी कहना शुरू करते हैं।हाथ में फूल लेकर नीर में डुबोकर दूसरे हाथ की हथेली के पिछे पानी के मोती बनाते रहते हैं,कहानी कहते रहते हैं।कहानी खत्म होने के साथ ही ईसरजी को गाली गाई जाती है
ईसरजी तो पेचो बांधे,गौरां बाई पेच संवारे ओ राज, म्है ईसर थारी साली छां....
जिसके घर पर बनोरा होता है वो फूलों की डाली के सोलह दांतुन बनाकर नीर में डुबोकर,ईसर,गौर,कान्हीराम,चांद,सूरज,सबको छुआते हुए बनोरा का न्योता देते हैं।
बंन्दोरे में लकड़ी के गौर ईसर आंगन में चौकी लगाकर,आसन बिछाकर बिठाते हैं।आजकल तो खूब सुन्दर सजावट भी करते हैं। प्रसाद में ड्राई फ्रूट्स,मिश्री, चाकलेट आदि सें ईसर गौर की खोल भरते हैं। अपनी श्रद्धा अनुसार रुपए रखते हैं।गौर को पानी पिलाते हैं। अगरबत्ती करके धूपिया करते हैं। यहां एक बात ग़ौरतलब है कि जो जो कार्य करते हैं ,उस समय के नियम के गीत होते हैं वो ही गाये जाते हैं।गीतों की समय समय की लिष्ट अलग सें उपलब्ध होगी।सभी आये हुओं को नास्ता , प्रसाद दिया जाता है।
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