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सूरज रोटा की कहानी (Suraj Rote ki Kahani)

                              श्री
                  सूरज रोटा की कहानी
 दो माँ बेटी ही।दोनूं सूरज भगवान को बरत करती।रोटो बनाती,काणी - कथा कर र भोग लगा र जिमती।एक दिन माँ बार गई जाती बेटी न केर गई म्हारो रोटो सेक लेई।पाछी आर भोग लगार जिमू।बेटी बोली ठीक है।लार सूं एक साधू आयो,बो बोल्यो भूखो हूं, रोटी द।जणा बेटी सोची,घर आयेडा साधु न भूखो नहीं भेजणु चाहिज।जको बा आपको रोटो दे दियो।साधू बोल्यो म तो हाल भूखो हूं, और रोटी द।जणा बा आपकी माँ क रोटा म स्यु कौर तोड़ र दे दी।साधु तो जिम कर चल्यो गयो।बाद म माँ आयी जणा बा बोली ल्या रोटा ल्या ,भोग लगावां,जिमा। जणा बेटी कौर टुटेड़ो रोटो लार दियो।जद माँ पूछ्यो ,म्हारौ रोटो कुंण तोड्यो,जणा बेटी सारी बात बताव कि एक साधू आयो,बो बोल्यो म भूखो हूं।म्हारो रोटो खा लियो,और मांग्यो जणा थांर रोटा म सूं थोड़ी कौर तोड़ र दी।जको थांर रोटा की कौर टुटयोडी है।इतो सुणतां ही माँ पागल हुगी,और बेटी न केवणं लागी-*रोटो द,धी रोटो द,रोटा मांयली कौर द,म्हार सागे रोटा की कौर द*।बेटी हार र घर सूं निकल गी।रात हुगी जणा जंगल म एक पेड़ पर चढ़ र बेठगी। सूरज भगवान स्यु अरदास कर कि मैं अब कांई करूँ,कठ जावूं।माँ न
सागे रोटो कठ हूं ल्यार देवूं ।बठिंन सूं राजा की सवारी  निकली।राजा बिन देख मोहित हु ज्याव।बिंक साग ब्याव कर र राणी बणार आपके साग ले ज्याव।
एक दिन बेटी महल म खड़ी ही जणा निचे देखी ,बिंकी माँ गळ्यां म पागल हुएड़ी बोलती फिर ही,रोटो द धि रोटो द,रोटा मांयली कौर द,म्हार सागे रोटा की कौर द।
जणा बा आपकी माँ न ल्या र एक कोठरी म बन्द कर देव।रोजीना रोटी पाणी दे देव।एक दिन दूसरी राणयां राजा न चुगली कर देव।राजा केव ई कोठरी म कांई है म्हांन दिखाओ।बा भोत मना कर पण राजा कोनी मान।जणा बा सूरज भगवान सूं प्रार्थना कर कि अब थे ही म्हारी लाज राखिज्यो।राजा कोठरी खोल तो माँ सोना की मूर्ति बण ज्याव।राजा पूछ आ कठ स्यु आई।जणा बेटी बोली,म्हार दुबळ पिहर की भेंट है।राजा बोल म्हार सासरा की भेंट इसी है जणा सासरो तो कितो ही जोरदार हुसी।मैं तो सासर जास्यूं। बा अब सूरज भगवान न फेर अरदास कर कि हे भगवान,अब मैं राजा न किस्या सासर लेर जाऊं।सूरज भगवान बिंकि प्रार्थना सुण र आव।और केव मैं सवा पौर को पिरवासो दे सकूँ।बिन्स्यु ज्यादा नहीं दे सकूँ।मन भी स्रष्टि मैं उगनु पड़।।बा बोली ठीक बात है।
दूसरे दिन राजा ,राणी, कुँवर और लाव लश्कर के सागे सासर जाव।सूरज भगवान की कृपा सूं जँगल म नई नगरी बस ज्याव।पिहर को परिवार, नोकर चाकर सब कुछ हु ज्याव।राजा इस्यो सासरो देख र भोत राजी हुवे।बोले आपां तो थोड़ा दिन अठ ही रुकस्यां।अब राणी घबरा ज्याव।कि सुबह हुतां ही तो सब कुछ मिट ज्यासी।बा रात न कुँवर क चुंटिया भर।जणा राजकुमार रोव ही रोव।किंया ही चुप नहीं हुवे।जणा बा राजा न केव,आपण कोई देवता की चूक हुई है।अबार की अबार ही पाछो जाणू पड़सी।वा फटाफट सब कोई रात न ही रवाना हु ज्याव।जँगल मु बार निकल इति देर म सूरज भगवान उग ज्याव।राजा न याद आव,कि म्हारी पगड़ी और तलवार तो बठे ही छुट ग्या। बे पाछा लेवण  न जावे तो देख कि च्यारूं मेर जँगल ही जँगल है।नगरी को कोई नामो निशान ही कोनी।पगड़ी एक आकड़ा पर टँगेड़ी ही,और तलवार झाड़याँ म पड़ी ही।राजा राणी न पूछ,ओ कांई माजरो है।सब कुछ कठ गायब हुग्या।जणा बा शुरू स्यु लेर पूरी बात बतावे।और केव मन तो सूरज भगवान सवा पौर को पिरवासो दियो हो।बा मूर्ति भी म्हारी माँ है।थे जिद करी कोठरी देखणो है।जणा म भगवान स्यु प्रार्थना करी,जद बा सोना की मूर्ति हुगी।जणा राजा नगर म आर ढिंढोरो पिटवाव की जो कोई भी सूरज भगवान को बरत करो,बो आपको ही रोटो खावे।कोई दूसरा न नहीं देव।फेर बेटी की प्रार्थना सूं सूरज भगवान बिंकी माँ न भी एकदम ठीक कर देव।हे सूरज भगवान, बी बेटी की लाज राखी बीसी सबकी राखिजे।घटी है तो पूरी करिजे,पूरी है तो परवान चढाईजे।
सब मिल बोलो सूरज भगवान की जय।

3 comments:

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    1. कथा गूगल से प्राप्त हुई धन्यवाद कहते है गूगल को

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