द्वारकाधीश बनकर भी नां इतराये
बचपन के मीत को गले लगाये
पानी का लोटा है मंगाये
पर हरि नें नां हाथ लगाये
इतने अश्रु छलके नैनन सें
द्विज के दोनों चरण धुलाये
भेंट में तंदूल सुदामा लाये
प्रभू ख़ुश हो,बड़े प्रेम सें खाये
तीसरी मुट्ठी भरने लगे तब
रुक्मणी सैनन सें समझाये
दो मुट्ठी में दो लोक वार दिये
करूणासागर
अन्तर्यामी
तीनों लोक जो दिये इन्हें तो
हम कहां जायेंगे मेरे स्वामी
मित्रता के शिखर का
कृष्ण सुदामा नाम
मित्रता की मिसाल का
बन गया है उपनाम
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