युग युग सें बहता आता,यह पुण्य प्रभाव हमारा
हम इसके लघुत्तम जलकण,बनते मिटते हैं क्षण क्षण
अपना अस्तित्व मिटाकर,तन मन धन करते अर्पण
बढ़ते जाने का शुभप्रण,प्राणों सें हमको प्यारा
यह पुण्य प्रभाव.......
इस धारा में घुलमिल कर,वीरों की राख बही है
इस धारा में कितने ही,ऋषियों नें शरण गहि है
इस धारा की गोदी में खेला इतिहास हमारा
यह पुण्य प्रभाव.......
यह अविरल तप का फ़ल है, यह राष्ट्र प्रवाह प्रबल है
शुभ संस्क्रति का परिचायक,भारत माँ का आँचल है
यह शाश्वत है चिर जीवन,मर्यादा धर्म हमारा
यह पुण्य प्रभाव.....
क्या इसको रोक सकेंगे,मिटने वाले मिट जायें
कंकड़ पत्थर की हस्ती,क्या बाधा बनकर आयें
ढह जायेंगे गिरि पर्बत, काँपे भू मण्डल सारा
यह पुण्य
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