श्री
भर सकता है घाव तलवार का,बोली का घाव भरे नां
शिवजी औऱ पार्वती,बैठे थे कैलाश में
पाँच नन्दी सँग गौ,चर रही थी घास में
तब गौरां नें बोल मारा, पाँच पति साथ में
सुन के वचन जब गौ नें श्राप दिया
दूजे जन्म गौरां ब्यासी,होंगे तेरे पाँच पिया
शँकर भगवान ने तब पाँच रूप धार लिया
पाँचू पति द्रोपदी नार के,गौ माता का वचन टरे नां
भर सकता है.......
पीहर का गमन किया,भृगु जी की नार नें
ऋषि के उदासी छाई,सेवा नहीं कारण
जिसें देख हँसी आई लक्ष्मी के भरतार नें
ऋषि को क्रोध आयो, श्राप दिया मन मांहि
नारी के वियोग में तूँ, भटकेगा बन मांहि
दशरथ के राजकुमार का,हनुमत बिन कारज सरे नां
भर सकता है......
द्रोपदी नें बोल मारा, दुर्योधन ,कर्ण को
महल में था जाल छद्म,पग नहीं धरण को
अंधे का बताया पुत्र,बोली ही के कारने
दुष्ट दुःशासन लाग्यो,चीर को उतारने
जब याद करी करतार नें,तुम बिन कोई सहाय करे नां
भर सकता है......
बोली सें अनादर होता,बोली सें ही मान है
बोली सें नरकां में जाता,बोली सें कल्याण है
प्यारे बोल बोलोगे तो,सार गति पाओगे
राम के भजन सें बन्दा, पार लग जाओगे
माधोदास केवे,सीधा बैकुंठा में जाओगे
सुमिरण करो राधेश्याम का,उस बिन कोई विपत्ति हरे नां
भर सकता है....…
No comments:
Post a Comment