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माटी री आ काया, आखिर माटी......


                                  श्री

माटी री आ काया, आखिर माटी म मिल ज्यावै है

क्यां रो गर्व कर रे मनवा, क्यां पर तूँ इतराव है


जिण तन न मीठा माल खुवा,तूँ निश दिन पाळ पोस है

अपने एक पेट की आग बुझावण,कितां रा मन रोस है

लेकिन गटका खायोड़ा न, एक दिन भटका आव है

क्यांरो गर्व कर रे.......


ओ तो च्यार दिनां रो च्यांननियों, सुण फेर अंधेरी रातां है

थारी टपडी सारी चुव है,ऐ सावण री बरसातां है

थोड़े जिण री खातिर क्यूं, भारी पाप कमाव है

क्यांरो गर्व कर रे.....


आँ सांसा रो विश्वास नहीं,कद आंती आंती रुक ज्यावै

जीवन मे झुकणो नहीं जाण्यो, बो जम र आगे झुक ज्यावै

एक कदम तो उठग्यो,दूजो कुंण जाण उठ पावे है

क्यांरो गर्व कर रे......


जो बीत गई सो बात गई, अब खांचल खेती कर ल तूँ

मुनिरूप कहे सद्गुण मोत्यां सूं,खाली झोळी भर ल तूं

जो जागे है सो पावै है ,जो सोवे वो पछतावे है

क्यांरो गर्व कर रे....


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