श्री
भादवा की चौथ की गणेश जी की कहानी
एक साहूकार हो।बिंक एक बेटो हो।बो परदेश म रेंवतो।घर म साहूकार, साहूकार की बहू और बेटा की बहू रेता।आग के जमाना म कनाई कोथलीयो, बागलियो आतो जणा मिठो बापरतो।रोजीना मिठो खान तांई कोनी मिलतो।एक बार घर म बहु क पीर स्यूं कोथलियो आयो।आगल जमाना म बहुआं अपने आप कोई चीज लेर कोनी खाती।सासुजी देता ,जणा ही खाती।अब सासुजी तो कोथलियो उठार ऊंच झरोखां म रख दियो कि म्हारो बेटो आई जणा बिन देवूं।बहु बिचारी कांई कर।मिठो खान की मन म आव,पण सासु जी तो देव ही कोनी।ऊंचो सरका दियो।आखिर बहु न एक तरकीब आयी।बा रोजीना झाड़ू बुहारी करती जणा एक,एक कर र मिठाई निकाल र खा लेती।थोड़ा दिनां म कोथलियो तो पुरो खत्म हुग्यो।इता दिनां म साहूकार को बेटो घरां आयो।सासु बहु न केव ,बीनणी झरोखां म कोथलियो रखेडो है ,बो लेर आवो।अब बा बहु सोची कि कोथलियो तो सारो खत्म हुग्यो कांई करूँ।सोचते सोचते एक उपाय सुझयो।बा सासुजी न जाकर बोली कि कोथलियो तो ऊंदरा लेग्या।
गणेश जी सोच्यो माटी आ तो म्हारी असवारी को नाम बदनाम कर।खुद मिठो खायगी हर नाम ऊंदरा को लगा दियो।इन तो चमत्कार दिखानु पड़सी।
साहूकार को बेटो आपकी लुगाई वास्त सवा लाख की कांचली ल्यायो।बो आपकी लुगाई न दी।रात न गणेश जी की सवारी ऊंदरा आया जको बे कांचली ले ज्यार हाली क पास म रख देव।सुबह साहूकार को बेटो उठ तो कांचली न हाली क कन पड़ी देख।जणा बिन भोत दुख हुव।बो सोच म्हारी लुगाई तो कुलखनी है।इसी लुगाई न तो मार देनी चहिज।बो सोच,दिन म सूरज देख,रात म चाँद देख।पर चाँद छुप ज्यासी जणा मार देवूं।बो रात को इंतजार कर।
रात हुव जणा चाँद भी छुप ज्याव पण बिना तेल,बिना बाती क दियो जळतो रेव।दिया को च्याननु रेव,जणा भी बो मार कोनी।पूरी रात बीत ज्याव।सुबह बो भारी मन स्यूं नित्यकर्म क वास्त गांव स्यूं बार जाव।बठे बो एक झोंपड़ी स्यूं आवाज़ आती सुण।जणा बो ध्यान देर सुणबा लाग ज्याव।बी झोंपड़ी म दियो और बीरी माँ आपस म बात कर।माँ पूछ ,बेटा आज घर आण म इति देरी क्यूं करी।जद दियो केव,आज एक निर्दोष की जान बचाण खातिर सारी रात बिना तेल,बिना बाती क जळणु पड़यो।माँ पूछ,इसी कांई बात हुगी।जणा दियो केव एक साहूकार को बेटो परदेश हूं घरां आयो बो आपकी लुगाई क सवालाख की कांचली ल्यायो।बिंकी लुगाई मिठाई खुद खा ली नाम ऊंदरा को लगा दियो।जणा गणेश जी बिन चमत्कार दिखान की खातिर बा कांचली हाली क सिरहाने रख दी।अब साहूकार को बेटो सोच,म्हारी लुगाई कुलखनी है।बो आज बिन अंधेरो हूंया पछ मारण हालो हो।ई वास्त मैं सारी रात जळतो रियो,जणा बिंकी लुगाई की जान बची है।
इति बात सुन कर साहूकार को बेटो भोत पछताओ कर कि आज म्हार हाथ स्यूं कितो बडो अनर्थ हु ज्यातो।बो घर जार आपकी माँ न केव कि माँ इंया भेदभाव नहीं करणु चहिज।मिनखां शरीर है।मिठो खान की मन म आ ज्याव तो बेटा बहु न सबन समान भाव स्यूं देनी चहिज।थे लुका र राखी जणा ई तो छान छान खाणु पड़यो।हर थार स्यूं डरता नाम ऊंदरा को लगा दियो।ओ तो गणेश जी महाराज चमत्कार दिखायो है।अब आगे सर ध्यान राखज्यो।जणा बा बहु भी आपकी गलती मान लेव।तो कोई चीज़ खान की मन म आव तो मांग र खा लेनु ।क्योंकि एक झूठ के लार सो झूट बोलणा पड़।है गणेश जी महाराज,घटी है तो पूरी करिये, पूरी है तो परवान चढ़ाइए।बोलो गणेश जी महाराज की जय
भादवा की चौथ की गणेश जी की कहानी
एक साहूकार हो।बिंक एक बेटो हो।बो परदेश म रेंवतो।घर म साहूकार, साहूकार की बहू और बेटा की बहू रेता।आग के जमाना म कनाई कोथलीयो, बागलियो आतो जणा मिठो बापरतो।रोजीना मिठो खान तांई कोनी मिलतो।एक बार घर म बहु क पीर स्यूं कोथलियो आयो।आगल जमाना म बहुआं अपने आप कोई चीज लेर कोनी खाती।सासुजी देता ,जणा ही खाती।अब सासुजी तो कोथलियो उठार ऊंच झरोखां म रख दियो कि म्हारो बेटो आई जणा बिन देवूं।बहु बिचारी कांई कर।मिठो खान की मन म आव,पण सासु जी तो देव ही कोनी।ऊंचो सरका दियो।आखिर बहु न एक तरकीब आयी।बा रोजीना झाड़ू बुहारी करती जणा एक,एक कर र मिठाई निकाल र खा लेती।थोड़ा दिनां म कोथलियो तो पुरो खत्म हुग्यो।इता दिनां म साहूकार को बेटो घरां आयो।सासु बहु न केव ,बीनणी झरोखां म कोथलियो रखेडो है ,बो लेर आवो।अब बा बहु सोची कि कोथलियो तो सारो खत्म हुग्यो कांई करूँ।सोचते सोचते एक उपाय सुझयो।बा सासुजी न जाकर बोली कि कोथलियो तो ऊंदरा लेग्या।
गणेश जी सोच्यो माटी आ तो म्हारी असवारी को नाम बदनाम कर।खुद मिठो खायगी हर नाम ऊंदरा को लगा दियो।इन तो चमत्कार दिखानु पड़सी।
साहूकार को बेटो आपकी लुगाई वास्त सवा लाख की कांचली ल्यायो।बो आपकी लुगाई न दी।रात न गणेश जी की सवारी ऊंदरा आया जको बे कांचली ले ज्यार हाली क पास म रख देव।सुबह साहूकार को बेटो उठ तो कांचली न हाली क कन पड़ी देख।जणा बिन भोत दुख हुव।बो सोच म्हारी लुगाई तो कुलखनी है।इसी लुगाई न तो मार देनी चहिज।बो सोच,दिन म सूरज देख,रात म चाँद देख।पर चाँद छुप ज्यासी जणा मार देवूं।बो रात को इंतजार कर।
रात हुव जणा चाँद भी छुप ज्याव पण बिना तेल,बिना बाती क दियो जळतो रेव।दिया को च्याननु रेव,जणा भी बो मार कोनी।पूरी रात बीत ज्याव।सुबह बो भारी मन स्यूं नित्यकर्म क वास्त गांव स्यूं बार जाव।बठे बो एक झोंपड़ी स्यूं आवाज़ आती सुण।जणा बो ध्यान देर सुणबा लाग ज्याव।बी झोंपड़ी म दियो और बीरी माँ आपस म बात कर।माँ पूछ ,बेटा आज घर आण म इति देरी क्यूं करी।जद दियो केव,आज एक निर्दोष की जान बचाण खातिर सारी रात बिना तेल,बिना बाती क जळणु पड़यो।माँ पूछ,इसी कांई बात हुगी।जणा दियो केव एक साहूकार को बेटो परदेश हूं घरां आयो बो आपकी लुगाई क सवालाख की कांचली ल्यायो।बिंकी लुगाई मिठाई खुद खा ली नाम ऊंदरा को लगा दियो।जणा गणेश जी बिन चमत्कार दिखान की खातिर बा कांचली हाली क सिरहाने रख दी।अब साहूकार को बेटो सोच,म्हारी लुगाई कुलखनी है।बो आज बिन अंधेरो हूंया पछ मारण हालो हो।ई वास्त मैं सारी रात जळतो रियो,जणा बिंकी लुगाई की जान बची है।
इति बात सुन कर साहूकार को बेटो भोत पछताओ कर कि आज म्हार हाथ स्यूं कितो बडो अनर्थ हु ज्यातो।बो घर जार आपकी माँ न केव कि माँ इंया भेदभाव नहीं करणु चहिज।मिनखां शरीर है।मिठो खान की मन म आ ज्याव तो बेटा बहु न सबन समान भाव स्यूं देनी चहिज।थे लुका र राखी जणा ई तो छान छान खाणु पड़यो।हर थार स्यूं डरता नाम ऊंदरा को लगा दियो।ओ तो गणेश जी महाराज चमत्कार दिखायो है।अब आगे सर ध्यान राखज्यो।जणा बा बहु भी आपकी गलती मान लेव।तो कोई चीज़ खान की मन म आव तो मांग र खा लेनु ।क्योंकि एक झूठ के लार सो झूट बोलणा पड़।है गणेश जी महाराज,घटी है तो पूरी करिये, पूरी है तो परवान चढ़ाइए।बोलो गणेश जी महाराज की जय
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