श्री
भादवा की चौथ की कहानी
एक साहूकार हो बिंक चार बेटा हा।चारूं को ब्याव हुयेड़ो हो।एक बेटी ही ब्,बा भी गांव म ही ब्यायोड़ी ही।आगल जमाना म सासु बहुआं न सोरी कोनी राखति ही।बहुआं तो बेचारी खान पिन की चीजां वास्त ही तरसती रेती। भादवा की चौथ को बरत हो ,साहूकार की बहुआं क भी मन म आटा को सिरों खाबा की इच्छा हुगी।सासुजी तो बनान कोनी देव।और बहुआं इति डरती कि बोल र केती भी कोनी कि मन कुछ खाणु है।अब कर तो कांई।सगळी जण्यां मिल र एक योजना बनाई।सासुजी न केव कि आज तो बाईजी को पेट दुख,सरदा कोनी जको थे जार मिल र आ ज्यावो।सासु बाईजी स्यूं मिलबा गई बीती देर म लार स्यूं बहुआं सिरो बना कर रख दियो।सगळी जन सलाह करी कि रात न चाँद उगसी जणा अरग देकर सिरो खा लेवा,सासुजी न पतो ही कोनी चाल।रात न चाँद उग्यो,बी टेम चोर चोरी करना खातिर घर म बड्यो।बो सारो धन बटोर लियो बी टेम ही छोटकी बहु उठी।बा देखी क चाँद तो उग ग्यो।अब देराणी जिठानी न हेलो कर।पण सेठ को नाम चांदमल हो,जणा बहु सुसरा को नाम लेव कोनी।बा देखी क चाँद क च्यारुंमेर गोल चक्कर है।जद बा हेलो करण न लागी,..….बडोडा भाभीजी कुंडालो,छोटक्या भाभीजी कुंडालो।अठीन बी चोर को नाम भी कुंडालो हो।बो डरग्यो ,के माटी आ तो घणी हुनस्यार है, म्हारो नाम भी जाण ।जणा बो डरतो सारो धन बठे ही छोड़ र भागण लाग्यो।पण पकड़ींज ग्यो।दूसरे दिन राजा क दरबार म चोर न हाज़िर करयो।राजा भोत राजी हुयो ओ चोर भोत चोरियां करतो पर आज तक पकड़ीज्यो कोनी हो।राजा न चोर बोल्यो,मन एक बात पूछनी है।साहूकार क बेटा की बहू कण जाण कि कामण जाण।बिन म्हारो नाम किंयां ठा पड़यो।जद साहूकार की बहुआं न दरबार म बुला कर सारी बात पूछी।जणा बे सारी बात बताव कि म्हार चौथ माता को बरत हो रात न चन्द्रमा जी उग्या जणा अरग देनी ही।म्हे म्हार सुसराजी को नाम लेवा कोनी।ई वास्त चन्द्रमा जी च्यारुंमेर घेरो हो जणा म्हे तो म्हार देराणी जिठानी न उठान खातिर हेलो करयो,कुंडालो ,कुंडालो।ओ चोर सोच्यो मन देख लियो जद ओ डरग्यो हर पकडीज ग्यो।इति बात है।जद राजा चोर न तो जेल म घाल देव हर साहूकार की बहुआं न घणो सारो धन देव।आगल जमाना म सुसरा को,जेठ को,धणी को नाम लेता कोनी हा।चौथ माता बांकी लाज राखी बीसी सबकी राखे।घटी है तो पूरी करिजे,पूरी है तो परवान चढ़ाई।बोलो चौथ माता की जय।
भादवा की चौथ की कहानी
एक साहूकार हो बिंक चार बेटा हा।चारूं को ब्याव हुयेड़ो हो।एक बेटी ही ब्,बा भी गांव म ही ब्यायोड़ी ही।आगल जमाना म सासु बहुआं न सोरी कोनी राखति ही।बहुआं तो बेचारी खान पिन की चीजां वास्त ही तरसती रेती। भादवा की चौथ को बरत हो ,साहूकार की बहुआं क भी मन म आटा को सिरों खाबा की इच्छा हुगी।सासुजी तो बनान कोनी देव।और बहुआं इति डरती कि बोल र केती भी कोनी कि मन कुछ खाणु है।अब कर तो कांई।सगळी जण्यां मिल र एक योजना बनाई।सासुजी न केव कि आज तो बाईजी को पेट दुख,सरदा कोनी जको थे जार मिल र आ ज्यावो।सासु बाईजी स्यूं मिलबा गई बीती देर म लार स्यूं बहुआं सिरो बना कर रख दियो।सगळी जन सलाह करी कि रात न चाँद उगसी जणा अरग देकर सिरो खा लेवा,सासुजी न पतो ही कोनी चाल।रात न चाँद उग्यो,बी टेम चोर चोरी करना खातिर घर म बड्यो।बो सारो धन बटोर लियो बी टेम ही छोटकी बहु उठी।बा देखी क चाँद तो उग ग्यो।अब देराणी जिठानी न हेलो कर।पण सेठ को नाम चांदमल हो,जणा बहु सुसरा को नाम लेव कोनी।बा देखी क चाँद क च्यारुंमेर गोल चक्कर है।जद बा हेलो करण न लागी,..….बडोडा भाभीजी कुंडालो,छोटक्या भाभीजी कुंडालो।अठीन बी चोर को नाम भी कुंडालो हो।बो डरग्यो ,के माटी आ तो घणी हुनस्यार है, म्हारो नाम भी जाण ।जणा बो डरतो सारो धन बठे ही छोड़ र भागण लाग्यो।पण पकड़ींज ग्यो।दूसरे दिन राजा क दरबार म चोर न हाज़िर करयो।राजा भोत राजी हुयो ओ चोर भोत चोरियां करतो पर आज तक पकड़ीज्यो कोनी हो।राजा न चोर बोल्यो,मन एक बात पूछनी है।साहूकार क बेटा की बहू कण जाण कि कामण जाण।बिन म्हारो नाम किंयां ठा पड़यो।जद साहूकार की बहुआं न दरबार म बुला कर सारी बात पूछी।जणा बे सारी बात बताव कि म्हार चौथ माता को बरत हो रात न चन्द्रमा जी उग्या जणा अरग देनी ही।म्हे म्हार सुसराजी को नाम लेवा कोनी।ई वास्त चन्द्रमा जी च्यारुंमेर घेरो हो जणा म्हे तो म्हार देराणी जिठानी न उठान खातिर हेलो करयो,कुंडालो ,कुंडालो।ओ चोर सोच्यो मन देख लियो जद ओ डरग्यो हर पकडीज ग्यो।इति बात है।जद राजा चोर न तो जेल म घाल देव हर साहूकार की बहुआं न घणो सारो धन देव।आगल जमाना म सुसरा को,जेठ को,धणी को नाम लेता कोनी हा।चौथ माता बांकी लाज राखी बीसी सबकी राखे।घटी है तो पूरी करिजे,पूरी है तो परवान चढ़ाई।बोलो चौथ माता की जय।
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