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छिंक की कहानी


                             श्री                    
                     छींक की कहानी                 
एक साहूकार हो।बो गांव म ही खेती बाड़ी को काम करतो।घर को गुजारो हु ज्यातो।बिंकी लुगाई पाणी ल्याण ख़ातिर जाती जणा सगळी लुगायां बातां करती।कोई केती आज तो म्हार हार घडायो है।कोई केती आज म्हार चुड़याँ लाया है।इंया सब जन्या आपकी नई नई चीजां को बताती।साहूकार की लुगाई को मन भोत खराब हुतो क म्हार तो घर खर्चो ही जियाँ तियाँ पार पड़,नई नई चीजां किंयां आव।
          एक दिन बा आपक धणी न केव ,थे भी परदेश कमाई करण खातिर जाओ ,जणा आपण घर भी नई नई चीजां ल्यावो।सगळी जन्या बातां कर,म्हारो भी मन कर आपण घरां भी नई नई चीजां ल्यावण की।साहूकार घणी मना कर,पण बा मान ही कोनी।जद बो रस्ता म खान तांई चूरमा का च्यार लाडू लिया और रवाना हु ग्यो।आगल जमान म लोग पैदल यात्रा करता हा।साहूकार भी दिन भर तो चाल्यो,रात हुई जणा एक मोटो धोरो देख र विश्राम लियो।कि हे धोरा का धणी थारो ही शरण है, म्हारी रुखाली करी।बी धोरा को धणी मोटो अज़गर सांप हो।बो रात भर साहूकार की रुखाली करी।दिन उग्यो जणा बो साहूकार न केव......हे साहूकार,म थारी रात भर रिखपाल करी।अब म चुगो पाणी लेन जाऊं, तूं थारो रस्तो देख।
साहूकार उठ र बेठग्यो।हर अलसा मलसा करण लाग्यो।अठीन सर्प देवता जान लाग्या जणा सर्पनी रस्तो रोक लियो ।कि म भी थार साग चालूं।थार जाण क बाद छोटा छोटा सपोलया, बिच्छु कांटा आव।म्हार साग हंसी ठठा कर,मज़ाक कर।मन चोखो कोनी लाग। सर्प देवता केव,तूं लुगाई जात है, म्हार साग कठ लेर जाऊं।थार बारकर एक लाइन खींचूं ,बी लाइन स्यूं बार मत निकली,बे थारो कीं कोनी कर सके।सर्प देवता बिंक बारकर कार कडार चल्या ज्याव।अठीन सर्प देवता पुठ फेरी कोनी इत्यान ही छोटा छोटा सांप गो इडा बिच्छु ,कांटा आव।बे सर्प देवता की काडेडी कार लोप कोनी सके।जणा सर्पनी खुद ही कार लोप र बार आ ज्याव।और बांक सागे हंसी ठठा करण लाग ज्याव।साहूकार बैठ्यो बैठ्यो सारी बात सुन हो।बिन आयी रिस कि देखो सर्पनी न किता चरित्र आव।सर्प तो देवता ह और लार सर्पनी इति छनगारी है।जदि सर्प जूनी म ईता नाटक आव,तो मिनखां जुण म तो लुगायां कांई कांई करती हुसी।बो आपको सर्पनी पर सात धोबा धूड़ का न्हाक्या हर सात जूती की ठोकी।हर पाछो घरां आय ग्यो।घर आयो जणा सगळा टाबर कोड करण लाग्या।कोई केव बाबोजी आय ग्या, कोई केव काकोजी आय ग्या।जणा साहूकार की बहू केव,भोत चोखी बात है।मन तो घणु धन कोनी चहिज।रात ही घणी ज़ोरदार  आंधी र मेह आयो।घणा ही फोड़ा पड्या।गाय डांगरा न मांय घालणु, माचा मचली मांय घालणु।म्हें तो एक दिन म ही हैरान, परेशान हुगी।चोखो हुयो आयग्या तो।
    उठींन सर्प देवता पाछा आया जणा सर्पनी आटी पाटी लेर सोयगी।सर्प देवता पूछ कांई बात हुई।जणा सर्पनी केव,थे तो बी साहूकार की सारी रात रुखाली करी,हर बो जातो जातो म्हार सात धोबा धूड़ का न्हाक
र गयो है।थे बिन जार डसो।नहीं तो मैं चुगो पाणी कोनी लेउ।सर्प देवता बोल्या कि डसूं तो किंयां राजा रो हुक्म कोनी।जद सर्पनी बोली परिंडा म मटकी क लार जार बैठ ज्यावो।बो पाणी भरण आव जणा फूंक मार दीज्यो ,किं तो पीड़ हुई।अब लुगायां क आगे तो बड़ा बड़ा हार ज्याव।सर्प देवता भी परिंडा म मटकी क लार जार बेठग्यो।
   साहूकार न्हा धोर तैयार हुयो ।रसोई म जीमन खातिर बैठ्यो।पाणी को लोटो भरण खातिर उठण लाग्यो।जित बीरी लुगाई न छींक आयगी।बिंकी लुगाई के छींक को नेम हो।बा बोली छड़ छींक हुगी ,एक बार रुक ज्यावो।दूसरी बार फेर छींक हुगी।बा बोली,छड़ छींक हुगी हेटा बैठ जाओ।जणा बो साहूकार बोल्यो ठा कोनी थार लुगायां का पड़पच।एक तो रात न ही एक तमासो देख्यो।जणा बीरी लुगाई बोली कि पेली तमासो देख्यो जको बता दयो।पछ पाणी भर ल्याया।जणा साहूकार सर्प सर्पनी की सारी बात बताव।और केव कि सर्प जूनी म ही इता नाटक कर तो मिनखां जुण म तो पतो कोनी कांई कांई कण कामन हुअ।ई वास्त म तो पाछो आय ग्यो।इति बात सुणतां ही सर्प देवता हड़ हड़  करता बार आय ग्या।कि हे साहूकार आज थारी लुगाई क छींक को नेम हो जणा थारा प्राण बचग्या।नहीं तो म ओ प्रायश्चित किंयां उतारतो।जको छींक को नेम राख जणा पुरो राखणु।छींकत आजे,छिंकत जाजे,छिंकत परघर मत जाजे।हे छिंक माता घटी है तो पूरी करी ,पूरी है तो परवान चढ़ाई।
बोलो छिंक माता की जय

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