श्री
युगों युगों से शाश्वत सनातन की,अविरल बहती धारा है
जहां कलश से अमृत छलका,वो भारत देश हमारा है
न्याय की देवी जैसा तराजू, ऊपर नीचे हिलता है
कभी द्नुज देव पर भारी,कभी देवत्व महकता है
जब जब भी हुआ ह्रास धर्म का,प्रभु फिर लीला करते हैं
धर्म की पुनर्स्थापना करने,विविध रूप धर आते हैं
देवी देवता भी ललचाए, भारत भूमि पर आने को
पावन मां गंगा में स्नान कर,धन्य धन्य हो जाने को
आज स्वर्ग है सूना सूना,धरा पे आनन्द भारी है
महाकुम्भ में डुबकी लगाने,पहुंचे कोटि नर नारी है
सत्य सनातनियों ने फ़िर आज,नया इतिहास रचाया है
महाकुम्भ के पावन क्षण को अमृत तुल्य बनाया है
नई भोर में एक नई किरण,ये नवयुग का आगाज़ है
जहां त्रिवेणी (गंगा,जमुना, सरस्वती)का संगम है
वो प्यारा प्रयागराज है
महेश्वरी सभा बैंगलोर ने भी,अनूठा बीड़ा उठाया है
सबको साथ ले,दुर्गम यात्रा को, अति सुगम बनाया है
संत समागम,धाम के दर्शन,पितरों को तृप्ति देने को
त्रिवेणी के स्वर्णिम क्षण को,जीवन में संजोने को
तहेदिल से आभार सभा का,महाकुम्भ में ले जाने को
सनातन के इस पावन पर्व के, साक्षी बन पुण्य कमाने को
मन के भावों की माला बनाकर,भावांजलि चढ़ाने को
पुष्पा ने पुष्पों का गुच्छा पिरोया,चरणों में नेह लगाने को
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