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Kabirkebhajan ।।मन लाग्यो मेरे यार फ़कीरी में....

                   
                                     श्री 

मन लाग्यो मेरे यार फ़कीरी में
जो सुख पायो राम भजन में,सो सुख नांहि अमीरी में

 भला बुरा सबका सुन लीजे,करि गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो.....

 प्रेम नगर में रहनी हमारी,भली बन आई सबूरी में 
मन लाग्यो .....

हाथ में कुण्डी बगल में सोटा,चारों ही दिशा जगीरी में
मन लाग्यो .......

आखिर ये तन खाख मिलेगा,काहे फिरत मगरुरी में
मन लाग्यो .....

कहत कबीर सुनो भाई साधो,साहिब मिलत सबूरी में
मन लाग्यो.....

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