जर्रे जर्रे में है झाँकी भगवान की
किसी सूझ वाली आँखों ने पहचान ली
नामदेव ने बनाई,रोटी कुत्ते ने उठायी
पीछे घी का कटोरा लिए जा रहे
प्रभु रूखी मत खाओ,थोड़ा घी तो लेते जाओ
क्यों रूप ये अपना छुपा रहे
तेरा मेरा एक। नूर,फ़िर काहे को हुजूर
तूने शक्ल बनाई है श्वान की
मुझे ओढ़नी ओढ़ा दी इन्सान की
जर्रे जर्रे में है......
निगाह मीरा की निराली,पी के जहर की प्याली
ऐसा गिरिधर बसाया हर श्वास में
जब आया काला नाग,बोली धन्य मेरे भाग
प्रभु आये आज ,सांप के लिबास में
आवो आवो बलिहारी,काले कृष्णमुरारी
बड़ी करुणा है करूणाधान की
किसी सूझ वाली आंखों ने पहचान ली
जर्रे जर्रे में है झांकी......
इसी तरह सूरदास,निगाह जिनकी थी ख़ास
नैनों में नशा था हरि नाम का
नैन हुये जब बन्द,आया औऱ भी आनन्द
देखा नजऱ नज़ारा घनश्याम का
हर जगह में समाया,सारे जग में दिखाया
देखी झूम झूम झाँकी भगवान की
किसी सूझ वाली आंखों ने पहचान ली
जर्रे जर्रे में है झाँकी......
गुरु नानक कबीर,वो थे जग के नज़ीर
पत्ते पत्ते में देखा था निराकार को
नज़दीक हो या दूर,रहे हाज़िर हुजूर
यही समझाया इस सँसार को
नथा सिंह हो जहां,शहर गाँव भी वहां
सब चीज है एक ही दुकान की
किसी सूझ वाली आंखों ने पहचान ली
जर्रे जर्रे में है......
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