Bhajan that connects with spirituality...

Shivashtkam | शिवाष्टकम् | shiv-stuti

                               श्री
                     ।।  शिवाष्टकम्  ।।
जय शिवशंकर, जय गङ्गाधर,करुणाकर करतार हरे ,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुखसार हरे ,
जय शशि शेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय,सगुण अनामय,निराकार साकार हरे,
पार्वती पति हर हर शम्भो,पाहि पाहि दातार हरे।1।
जय रामेश्वर,  जय नागेश्वर,    वैधनाथ    कैदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय महाकाल,ओंमकार हरे,
त्रयम्बकेश्वर,  जय घुश्मेश्वर , भीमेश्वर , जगतार हरे ,
काशीपति, श्री विश्वनाथ जय,मङ्गलमय अघहार हरे,
नीलकण्ठ जय,भूतनाथ जय,मृत्युंजय अविकार हरे,
पार्वती पति......।2।
जय महेश जय जय भवेश जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख सें हे गुणातीत प्रभू,तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकारक,तारक, हारक,पातक दारक,शिवशम्भो,
दीन दुःख हर,सब सुखाकर, प्रेम सुधाकर,  दया करो,
पार लगा दो भवसागर सें,  बनकर,  कर्णाधार ,हरे ,
पार्वती पति.......।3।
जय मनभावन,जयअतिपावन,शोक नशावन शिव शम्भो,
विरद विदारण, अधम उबारण,सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर,जलज नयन वर,धवल वरण तन शिव शम्भो,
मदन कदन कर,पाप हरण हर, चरण मनन धन शिव
शम्भो,
विवसन,विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे ,
पार्वती पति.....।4।
भोलानाथ कृपालु दयामय,औघड़दानी शिव योगी,
निमिष मात्र में देते हैं, नवनिधि मनमानी शिवयोगी,
सरल ह्रदय ,अति करुणासागर,अकथ कहनी शिवयोगी
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसाद्री शिव योगी,
स्वयं अकिंचन,जनमन रंजन,पर शिव परम उदार हरे,
पार्वती पति....।5।
आशुतोष इस मोह मयी, निद्रा सें मुझे जगा देना ,
विषम वेदना सें विषयों की,मायाधीश छुड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूंद सें जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य ज्ञान भण्डार युगल चरणों की लगन लगा देना,
एक बार,इस मन मंदिर ,में कीजे पद सञ्चार हरे,
पार्वती पति....।6।
दानी हो,दो भिक्षा में, अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो,दो तुम इस संसार सें पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो दो तुम अपने,चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
पूरण ब्रम्ह हो दो तुम अपने रूप का सच्चा ज्ञान प्रभो,
स्वामी हो,निज सेवक की सुण लेना करूण पुकार हरे,
पार्वती पति......।7।
तुम बिन "बेकल" हूं प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण,शरण की बांह गहो, हे उमारमण प्रियकंत हरे,
विरह व्यथित हूं, दीन दुःखी हूं, दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ,तुम मेरे हो जाओ ,आ जाओ, श्रीमन्त हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर,कुछ तो करो,विचार हरे
पार्वती पति.....।8।





No comments:

Post a Comment