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यह कैसी सोची रघुराई,...(ram ji ke bhajan)

                                 श्री
यह कैसी सोची रघुराई,तुझे वन की आज्ञा है माई
1 भोरे,भोरे बुलाके कहा राम ने
    ऐसी बात पड़ी है मेरे कान में
    कोई निंदा करे,तो मुझे ना भावे
     भेजूं बन में ऐसी ठहराई,तुझे वन....
2   ये बातें ना कहना,किसी सें कभी
      भैया लछमण सिया को ले जाओ अभी
     छोड़ आओ वहां,ना हो कोई जहां
     देखो कछु ना दया हरि को आई,तुझे वन....
3   जब अग्नि परीक्षा मेरी हो गई
     तो बताओ लखन अब क्या बाकी रही
    कहके रोने लगी,धीर खोने लगी
    ,सिया निरजन बन में घबराई,तुझे वन...
4  बोले लछमन माँ ,मैं भी गुनहगार हूं
    करूँ तो क्या करूँ मैं भी लाचार हूं
     मैंने बहुत कही, मानी हरगिज़ नहीं
    जाने,ऐसी क्या कोई समझाई, तुझे वन...
5  छोड़ लछमण भी सीता को जाने लगे
    पशु,पक्षी भी आँसू बहाने लगे
    प्रभु के कैसी जची, यह लीला रची
    गाथा,देवकीनन्दन नें गाई, तुझे वन....

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