श्री
पिंपल ,पथवारी की कहानी
एक साहूकार हो।बिंक सन्तान कोनी ही।सेठ ,सेठानी क रोज़ को पिपल, पथवारी सिंचबा को नेम हो।गांव स्यूं बारा कोस दूर रोज़ीना सींचन जाता।एक दिन सेठाणी बोली,अब धीर धीर उमर आव ज्यूँ शरीर कमज़ोर हुण लाग ग्यो।पीपल ,पथवारी सींच र घरां आवां बित थक ज्यावां।घर को काम दोरो हुव।थे कोई जतन कर र घर म बहु लेर आवो।सेठ क धन की कमी कोनी ही।सेठ मन म विचार कर र घर स्यूं रवाना हुयो।साग एक कोथली म आटो घाल्यो,बिंम सोना की मोरां मिला दी।
चालतां चालतां एक गांव म पुग्यो ।गांव क बार पांच सात छोर्यां खेल ही।घर बनाव ही,मिटावे ही।एक छोरी बोली म तो म्हारो बनाएडो घर मिटावूं कोनी।सेठ बी छोरी क लार लार बिंक घरां चल्यो ग्यो।
बठे जार बोल्यो ,मैं तो बटाउ हूं।रात भर विश्राम करणु है।छोरी का मा बाप सद्ग्रहस्थी है। बोल्या रुक ज्यावो।भोजन करो।जद सेठ बोल्यो ,म म्हारो आटो साग ल्यायो हूं, थान तकलीफ नहीं हुव तो बिंकी रोटीयां बना दयो।जणा छोरी की माँ बोली ठीक है, बना देवां।
अब बे आटो छानबा लागी तो बिंम सोना की मोरां निकली।बे सेठ न ले जार देई,जणा सेठ बोल्यो म्हार तो कीं अतो पतो ही कोनी, घणी लिछमी है।इंया ही कठ ही रखेड़ी मिल ज्याव।ऐ थे थारी बाई न ही दे दयो।जणा बी छोरी का मा बाप भोत आश्चर्य कर।बे पूछ थे कांई काम जा रिया हो।जद सेठ बोल्यो,म्हार बेटो है, बिंक सगपण खातिर जाऊं हूँ।जणा छोरी का मा बाप आपस म सलाह करी ,हर सेठ न बोल्या,कि आपके जच तो म्हारी भी बेटी ब्याव हाली है।
सेठ तो ओइ चावो हो।मन म भोत राजी हुयो,पर ऊपर स्यूं बोल्यो,थारी बेटी तो मन आछी लागी है, पर म्हारी एक शर्त है।म्हारो बेटो परदेश म रेव,अबार आ कोनी सके।जको म ब्याव तो तलवार क साग ही करवा स्यूं।और म तो अबार ही परणार ले ज्यासयुं।ओ मंजूर हुव तो म तो त्यार हूं।
आगला जमाना म इंया भी ब्याव हुतां हा।आदमी की जबान की कीमत हूती।छोरी का मा बाप सोच्यो ,इतो धन है ,छोरी सुख पाई।जको तलवार साग फेरा देर बेटी न भेज दी।
सेठ बहु न लेर घरां आय ग्यो।सेठाणी भोत राजी हुई।बे दोनु जणा पीपल पथवारी सींच र आता,जणा बहु रसोई बना र राखति।सासु क पगां क तेल मालिस करती।खूब सेवा करती।करतां करतां कई साल हुग्या।एक दिन एक पड़ौसन बहु न बोली,कि थारा सासु सुसरा क तो कोई टाबर ही कोनी।तन इंया ही ब्याव करा र लियाया।बहु बोली,इंया थोड़ी हुव।म्हारा सासु सुसरा तो भोत चोखा है।बे झूठ कोनी बोल।जणा पड़ौसन बोली,तन सगळां कमरा की चाबी दिया है के।बहु बोली नहीं,छः कमरा की चाबी तो दे दी,सातवां की कोनी दी।जणा पड़ोसन बोली,आज सातवां कमरा की चाबी मांगी,तन ठा पड़ ज्यासी।
बी दिन बहु रसोई बनाई जणा साग म नमक कोनी घाल्यो।सेठ सेठाणी जीमन बेठयां।साग म नमक कोनी।जणा सासु बोली ,बेटा आज नमक घालणु भुलगी के। साग अलुणा है।जद बहु बोली सासुजी म तो थार बेटा बिना सदा ही अलुणी हूं।
सेठ सेठाणी आपस म बोल,आज तो बहु न लोगां की सिखावण लाग गी।
अब बहु सासु न केव।थारो बेटो कद आई।थे मन सातवां कमरा की चाबी क्यूँ कोनी देवो।आज तो थान चाबी देनी पड़सी।
पिंपल ,पथवारी की कहानी
एक साहूकार हो।बिंक सन्तान कोनी ही।सेठ ,सेठानी क रोज़ को पिपल, पथवारी सिंचबा को नेम हो।गांव स्यूं बारा कोस दूर रोज़ीना सींचन जाता।एक दिन सेठाणी बोली,अब धीर धीर उमर आव ज्यूँ शरीर कमज़ोर हुण लाग ग्यो।पीपल ,पथवारी सींच र घरां आवां बित थक ज्यावां।घर को काम दोरो हुव।थे कोई जतन कर र घर म बहु लेर आवो।सेठ क धन की कमी कोनी ही।सेठ मन म विचार कर र घर स्यूं रवाना हुयो।साग एक कोथली म आटो घाल्यो,बिंम सोना की मोरां मिला दी।
चालतां चालतां एक गांव म पुग्यो ।गांव क बार पांच सात छोर्यां खेल ही।घर बनाव ही,मिटावे ही।एक छोरी बोली म तो म्हारो बनाएडो घर मिटावूं कोनी।सेठ बी छोरी क लार लार बिंक घरां चल्यो ग्यो।
बठे जार बोल्यो ,मैं तो बटाउ हूं।रात भर विश्राम करणु है।छोरी का मा बाप सद्ग्रहस्थी है। बोल्या रुक ज्यावो।भोजन करो।जद सेठ बोल्यो ,म म्हारो आटो साग ल्यायो हूं, थान तकलीफ नहीं हुव तो बिंकी रोटीयां बना दयो।जणा छोरी की माँ बोली ठीक है, बना देवां।
अब बे आटो छानबा लागी तो बिंम सोना की मोरां निकली।बे सेठ न ले जार देई,जणा सेठ बोल्यो म्हार तो कीं अतो पतो ही कोनी, घणी लिछमी है।इंया ही कठ ही रखेड़ी मिल ज्याव।ऐ थे थारी बाई न ही दे दयो।जणा बी छोरी का मा बाप भोत आश्चर्य कर।बे पूछ थे कांई काम जा रिया हो।जद सेठ बोल्यो,म्हार बेटो है, बिंक सगपण खातिर जाऊं हूँ।जणा छोरी का मा बाप आपस म सलाह करी ,हर सेठ न बोल्या,कि आपके जच तो म्हारी भी बेटी ब्याव हाली है।
सेठ तो ओइ चावो हो।मन म भोत राजी हुयो,पर ऊपर स्यूं बोल्यो,थारी बेटी तो मन आछी लागी है, पर म्हारी एक शर्त है।म्हारो बेटो परदेश म रेव,अबार आ कोनी सके।जको म ब्याव तो तलवार क साग ही करवा स्यूं।और म तो अबार ही परणार ले ज्यासयुं।ओ मंजूर हुव तो म तो त्यार हूं।
आगला जमाना म इंया भी ब्याव हुतां हा।आदमी की जबान की कीमत हूती।छोरी का मा बाप सोच्यो ,इतो धन है ,छोरी सुख पाई।जको तलवार साग फेरा देर बेटी न भेज दी।
सेठ बहु न लेर घरां आय ग्यो।सेठाणी भोत राजी हुई।बे दोनु जणा पीपल पथवारी सींच र आता,जणा बहु रसोई बना र राखति।सासु क पगां क तेल मालिस करती।खूब सेवा करती।करतां करतां कई साल हुग्या।एक दिन एक पड़ौसन बहु न बोली,कि थारा सासु सुसरा क तो कोई टाबर ही कोनी।तन इंया ही ब्याव करा र लियाया।बहु बोली,इंया थोड़ी हुव।म्हारा सासु सुसरा तो भोत चोखा है।बे झूठ कोनी बोल।जणा पड़ौसन बोली,तन सगळां कमरा की चाबी दिया है के।बहु बोली नहीं,छः कमरा की चाबी तो दे दी,सातवां की कोनी दी।जणा पड़ोसन बोली,आज सातवां कमरा की चाबी मांगी,तन ठा पड़ ज्यासी।
बी दिन बहु रसोई बनाई जणा साग म नमक कोनी घाल्यो।सेठ सेठाणी जीमन बेठयां।साग म नमक कोनी।जणा सासु बोली ,बेटा आज नमक घालणु भुलगी के। साग अलुणा है।जद बहु बोली सासुजी म तो थार बेटा बिना सदा ही अलुणी हूं।
सेठ सेठाणी आपस म बोल,आज तो बहु न लोगां की सिखावण लाग गी।
अब बहु सासु न केव।थारो बेटो कद आई।थे मन सातवां कमरा की चाबी क्यूँ कोनी देवो।आज तो थान चाबी देनी पड़सी।
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