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कार्तिक की कहानी

                           श्री           
               कार्तिक की कहानी         
एक साहूकार हो।बिंक दो बेटा हा।बड़ा बेटा की बहू झगड़ालू ही।छोटी बहू स्याणी ही।कार्तिक को महीनों आयो।सुसरा जी न काति नहानी ही।बो छोटी बहू न बोल्यो।बहु मन काति न्हानु है, सो सुबह पाणी गरम कर देई।बहु सुबह बेगी बेगी उठ र पाणी तातो करती।बाल्टी म पाणी घाल र ,तातो ठंडो बराबर कर र सुसरा जी के नहान तांई रख देती।धोती ,गंजी,गमछो रख देती।सुसरो जी न्हा लेता जणा धोती धोर बोलती,झर झर ए म्हारी झरणी धोती,आधा हीरा आधा मोती। जणा बी धोती म स्यूं हीरा मोती झरता ।इंया करतां करतां महीनों पुरो हुयो।सुसरोजी बोल्या मन नगर नुत र जिमाणु है।जणा बहु सारी रसोई बना दी और सुसरा जी न बोली थे सबन जिमाओ मैं खेत म रुखाली करूँ।बहु खेत चली गई।बठे चिडया न खेत धान खाती देख र बोलने लागी, रामजी की चिड़िया,रामजी का खेत।खाओ ए चिड़िया भर भे पेट।चिड़याँ पेट भर भर के धान खा लियो।बा पाछी घर गयी तो बिंक अन्न धन भंडार भरिज ग्या।दूसरी साल जिठानी बोली ई बार सुसराजी न काती मै नहूवाऊँ।बा बलती झलती पाणी भरती।कदैई घनु ठंडो हुतो,कदैई घनु ही गर्म हुतो।सुसरा के न्हायाँ पछ रिसयां बलती धोती बिना धोएडी रस्सी पर न्हाक देती,हर बोलती,झर झर ऐ म्हारी झरणी धोती,आधा हीरा आधा मोती।जणा धोती म स्यूं कीड़ा मकोड़ा झड़ ज्याता।
महीनों पुरो हुयो,सुसरो बोल्यो ब्राम्हण जिमाणु है।जणा बा दो ब्राह्मण नुत दिया।थोड़ी सी रसोई बना र सुसरा न बोली,थे ब्राम्हण न जिमाओ ,म खेत पर जाऊं।खेत म देखी चिड़याँ धान खाव तो हल्ला मचाती चिड़याँ न भाटा फेंक फेंक र उड़ान लागी।शाम का घर आई तो घर म कीं कोनी बच्यो।खावण न भी कीं नहीं रियो।जणा बा रोवण लागी।और बोली जद देराणी सुसरा जी न काती नहुवाई जणा बिंक अन्न धन भंडार भर ग्या।और मैं नहुवाई जणा म्हार दरिद्री क्यूँ आय गी।जणा सुसरो जी बोल्या बा तो भोला जीव की है।मन तन स्यूं नहुवाई,और तूं लालच म आर बलती झलती नहुवाई।ई वास्त दरिद्री आयी।जणा बा भगवान स्यूं माफी मांगी।हर पछताओ करयो जणा पाछी लिछमी आय गी।जको बड़ा मायतां री सेवा मन तन स्यूं करनी।बांकी आत्मा आशीष देव जणा घर म भोत अन्न धन भंडार भर ज्याव।घर बेठयां तीर्थ रो फ़ल मिल ज्याव।हे महाराज,घटी है तो पूरी करी,पूरी है तो परवान चढ़ाई।बोलो कार्तिक मास की जय।

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