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बिनायक जी की कहानी (Vinayak ji ki Kahani)




                             श्री
            बिनायक जी की कहानी
एक मिण्डको मिंडकी हा।मिंडकी रोज़ीना बिनायक जी की काणी केती।मिण्डका न केती हुंकारों भर।मिण्डको केतो तूं पराया पुरुष को नाम लेव,म तो हुंकारों कोनी भरूँ।एक दिन बिनायक जी न रिस आयगी।कुम्हारी पाणी लेंण आई, बी पाणी क साग मिण्डको ,मिंडकी भी चल्या गया।कुम्हारी ले ज्यार पाणी न चूल्हा पर चढ़ा दियो।आग जळ ज्यूँ मिण्डका न ताप लाग।मिंडकी न ताप लाग कोनी।बा तो आपकी सटक बिनायक,सटक बिनायक कर।मिण्डको केव तूं काणी क, मैं हुंकारों देउँ।जणा मिंडकी काणी केव,मिण्डको हुंकारों देव।बिनायक जी महाराज न तो चमकाली दिखानी ही मिंडका न।जणा काणी केव,हुंकारों भर जित ही दो सांड आव लड़ता लड़ता।आर चूल्हा के सींगा स्यूं मार ।पाणी उछल ज्याव,चूल्हों बुझ ज्याव।मिण्डको मिंडकी तालाब की पाळ् पर चल्या ज्याव।अब मिंडकी रोज़ीना काणी केव,मिण्डको हुंकारा देव।हे बिनायक जी महाराज,मिंडकी की लाज राखी बीसी सबकी राख जे,मिंडका न चमत्कार दिखायो बिस्यो किन ही मत दिखाइजे।घटी है तो पूरी करिजे, पूरी है तो परवान चढाईजे।सब मिल बोलो,बिनायक जी महाराज की जय

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