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कार्तिक की कहानी,गंगा -जमुना की कहानी


                                श्री
        कार्तिक मास की कहानी,गंगा -जमुना की कहानी
गंगा जमुना दो बेना ही।दोनूं साहूकार के खेत म स्यूं जाव ही।जमुना खेत में स्यूं तिल तोड़ र खा लिया।जणा गंगा बोली तूँ बिना पुछ्यां  12 दाना तिल का खाया है तन प्रायश्चित करण खातिर 12 साल साहूकार क घरां नोकरी करणी पड़ी। जणा जमुना साहूकार क घरां जार बोली ,मन नोकरी रख ल्यो।चार काम छोड़ र थार घर का सब काम कर देउँ।एक तो जूठा बरतन कोनी धोऊँ, झाड़ू कोनी काढूं,सेज कोनी बिछाउ और दियो कोनी चासूं।साहूकार बिन नोकरी पर रख ली।बारा बरसां बाद कुम्भ को मेळो आयो।साहूकार,साहुकारणी मेला म जान लाग्या जणा जमुना बान एक सोना को टको दियो और बोली कि बठे म्हारी बहन गंगा है, बिंन ओ टको दे दीज्यो।हर के दीज्यो थारी बहन जमुना भेज्यो है।जद साहूकार पूछ्यो म्हें किंयां जाणस्यां थारी बहन न।जणा जमुना बोली गंगा क तीर पर जार थे केस्यो कि थारी बहन जमुना सोना को टको भेज्यो है जद गोरी गोरी बहियाँ, हरी हरी चूड़ियां पहरयां ले लेवगी।बे लोग बठ जार हेलो करयो जत ही गंगा हाथ पसार कर ले ली,और बोली म्हारी बहन जमुना न कह दीज्यो,अब 12 बरस पूरा हुग्या,सो तूं पाछी आज्या।साहूकार ,साहूकारणी पाछा आय ग्या।जमुना पूछ्यो म्हारी बहन सोना को टको ले लियो।जद बे बोल्या हां ले लियो ओर बोली है म्हारी बहन न किया कि 12 बरस पूरा हुग्या,अब पाछी आज्या।इतो सुणतां ही जमुना सहस्त्र धारा बण  र बहण लागी।साहूकार साहूकारणी न जद यो पतो चाल्यो कि जमुना माता म्हार घर को सारो काम करती तो बान भोत पछतावो हुण लाग्यो।कि अब म्हारो ओ पिराछित किंयां उतरी।जणा रात न सुपना म जमुना जी आर केव थान कोई पाप कोनी लाग्यो।गंगा जमुना म्हे दोनु बहना थार खेत म स्यूं जाव ही।म थार खेत म स्यूं काला तिल का 12 दाणां खा लिया।बा म्हार चोरी लाग गी।बिंको प्रायश्चित करण खातिर मन थार घरां 12 साल नोकरी करणी पड़ी।अब म्हारो प्रायश्चित पुरो हुग्यो ई वास्त पाछी चली गयी ।इम थारो कोई दोष कोनी।थारी मुक्ति हु ज्यासी।हे गंगा माता  बांकी मुक्ति करी बीसी सबकी करिजे,म्हारी भी करिजे।घटी है तो पूरी करिजे, पूरी है तो परवान चढाईजे।सब मिल बोलो गंगा-जमुना मैया की जय

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