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द्रोपदी की पुकार


                                  श्री

बिन काज,आज महाराज,लाज गई मेरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ शरण में तेरी


दुशासन वंश कठोर महा दुःखदाई

कर पकरत मेरो चीर लाज ना आई

अब हुआ धरम का नाश ,पाप रहा छाई

लखि अधम सभी की औऱ नारी बिलखाई

शकुनि दुर्योधन कर्ण खड़े खल घेरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ......


तुम दीनन की सुधि लेत देवकीनन्दन

महिमा अनन्त भगवंत भक्त दुःख भंजन

तुम किया सिया दुःख दूर शम्भु धनु खण्डन

अति आरत मदनगोपाल मुनिन मन रंजन

करूणा निधान भगवान करो क्यों देरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ...... 


तुम सुनी गज की टेर विश्व अविनाशी

ग्राह मारि छुटाई बंध कटी पग फाँसी

मैं धरयो तिहारो ध्यान ,द्वारिकवासी

अब काहे राज समाज करावत हांसी

अब कृपा करो यदुनाथ जान चित चेरी

दुःख हरो द्वारीकनाथ.......


तुम पत राखी प्रह्लाद दीन दुःख टारयो

भये खम्भ फाड़ नरसिंह असुर संहारयो

बन खेलत केसी आदि बकासुर मारयो

मथुरा मुष्टिक चाणूर कंस को मारयो

तुम मात पिता की जाय छुड़ाई बेड़ी

दुःख हरो द्वारिकानाथ......


भक्तन हित लियो अवतार कन्हाई तुमने

नल कूबर की जडयोनि छुड़ाई तुमने

जल डूबत प्रभुता अगम दिखाई तुमने

नख पर गिरिवर धर वृज को बचाया तुमने

प्रभु अब बिलम्ब क्यों करो हमारी बेरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ.......


बैठे हैं राज समाज नीति जिन्ह खोई

नहिं करत धरम की बात सभा में कोई

पांचों पति बैठे मौन-कौन गति होई

ले नंदनन्दन को नाम,द्रोपदी रोई

कर कर बिलाप,सन्ताप सभा में टेरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ.......


सुनि दीनबन्धु भगवान,भक्त हितकारी

हरि चीर रूप भये आय,हरयो दुःख भारी

खींचत हारयो मतिमन्द बीर बलकारी

रख लई दीन की लाज आप बनवारी

हरसत सुर बरसत सुमन बजावत भेरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ.......


क्या करी द्वारिकानाथ मनोहर माया

अम्बर का लगा पहाड़,अन्त नहीं पाया

तिहुँ लोक चतुर्दस भुवन चीर दरसाया

बंदित गणेश परसाद कृष्ण गुण गाया

दीनन के दीनानाथ बिपति निवेरी

दुःख हरो द्वारिकानाथ......

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