श्री
नन्दजी के लाल,ऊंचा दे मेरी मटकी
मदनगोपाल ऊंचा दे मेरी मटकी
मैं जल जमुना भरने गई थी
बन्शी की धुन सुन,भँवर में अटकी
नन्दजी के लाल.....
सङ्ग की सहेली मेरी बिछुड़ गई है
अब मोहे कौन ऊँचाये मेरी मटकी
नन्दजी के.....
दोराणी जिठाणी मोहे छोड़ चली है कि
सास देगी ताना, बहु तूं कहाँ अटकी
नन्दजी के लाल ....
तेरी गागर राधे मैं ना उठाऊँ
शोभा घट जाये ,मेरे पनघट की
नन्द जी के लाल.....
चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छवि
लाज रखो प्रभू मेरे घूँघट की
नन्दजी के लाल....
Aakhir Kyon Nand ji ke laal uncha de meri
ReplyDeletePauranik Kathayen thank for artical