श्री
गुरु गोविन्द दोऊं खड़े,
काके लागूं पांय,।
बलिहारी गुरु आपने,
जिन्ह गोविन्द दियो बताय ।।
गुरु की महिमा अपरम्पार है।गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता।औऱ ज्ञान के बिना मनुष्य औऱ दूसरे जीव में फ़र्क नहीं होता।गुरु शब्द की व्याख्या जितनी कि जाए कम है, हमारे वेद शास्त्र गुरु की महिमा का गुणगान करते थकते नहीं है। सागर की गहराई को मापना सम्भव हो सकता है, पर गुरु की अपार दयालुता की थाह पाना सम्भव नहीं है।
गुरु कौन है? गुरु वो है, जो हमें अंधकार सें, अज्ञानता सें निकालकर उजाले की औऱ लाये,हमारा विवेक जाग्रत करे वो ही गुरु है।इंसान की प्रथम गुरु माँ होती है।फिर अपने पिता सें भी ज्ञान मिलता है वो भी गुरु है
विद्या की प्राप्ति जिनसें होती है, वो भी गुरु है।जो हमें संसार के मोह जाल सें निकाल कर अध्यात्म की औऱ ले जाते हैं वो सद्गुरु होते हैं।और मेरा तो ये मानना है हमें छोटे बड़े ,जीव जन्तु ,किसी भी प्राणी सें कुछ भी अच्छा सीखने को मिलता है, वो भी हमारे गुरु बन जाते हैं।उदाहरण के लिए,चींटी सें भी हमें ये सीखने को मिलता है कि किसी भी कार्य को पूरी निष्ठा व लग्न सें किया जाए तो हजार अड़चनों के बावजूद भी सफलता मिलकर ही रहती है।
और हम जब तक जीवित हैं, तब तक किसी ना किसी रूप में कुछ ना कुछ नया सीखते ही रहते हैं इसलिए गुरु का वर्णन तो हमारी तो बात ही क्या है
धरती रो कागज़ बण,समंदर बण दवात ।
लिखण वाळी माँ शारदा फिर भी,गुरु गुण लिखा न जात ।।
जय श्री कृष्णा
गुरु गोविन्द दोऊं खड़े,
काके लागूं पांय,।
बलिहारी गुरु आपने,
जिन्ह गोविन्द दियो बताय ।।
गुरु की महिमा अपरम्पार है।गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता।औऱ ज्ञान के बिना मनुष्य औऱ दूसरे जीव में फ़र्क नहीं होता।गुरु शब्द की व्याख्या जितनी कि जाए कम है, हमारे वेद शास्त्र गुरु की महिमा का गुणगान करते थकते नहीं है। सागर की गहराई को मापना सम्भव हो सकता है, पर गुरु की अपार दयालुता की थाह पाना सम्भव नहीं है।
गुरु कौन है? गुरु वो है, जो हमें अंधकार सें, अज्ञानता सें निकालकर उजाले की औऱ लाये,हमारा विवेक जाग्रत करे वो ही गुरु है।इंसान की प्रथम गुरु माँ होती है।फिर अपने पिता सें भी ज्ञान मिलता है वो भी गुरु है
विद्या की प्राप्ति जिनसें होती है, वो भी गुरु है।जो हमें संसार के मोह जाल सें निकाल कर अध्यात्म की औऱ ले जाते हैं वो सद्गुरु होते हैं।और मेरा तो ये मानना है हमें छोटे बड़े ,जीव जन्तु ,किसी भी प्राणी सें कुछ भी अच्छा सीखने को मिलता है, वो भी हमारे गुरु बन जाते हैं।उदाहरण के लिए,चींटी सें भी हमें ये सीखने को मिलता है कि किसी भी कार्य को पूरी निष्ठा व लग्न सें किया जाए तो हजार अड़चनों के बावजूद भी सफलता मिलकर ही रहती है।
और हम जब तक जीवित हैं, तब तक किसी ना किसी रूप में कुछ ना कुछ नया सीखते ही रहते हैं इसलिए गुरु का वर्णन तो हमारी तो बात ही क्या है
धरती रो कागज़ बण,समंदर बण दवात ।
लिखण वाळी माँ शारदा फिर भी,गुरु गुण लिखा न जात ।।
जय श्री कृष्णा
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