कितनी बार पुकारा तुमको,सुनते नहीं पुकार प्रभू
भूल गये क्या तुम भी हमको,दीनों के आधार प्रभू
दयासिन्धु कहलाते हो,पर,दया नहीं दिखलाते हो
हो कर दीनानाथ ,आज,क्यों,दीनों को ठुकराते हो
छुपा नहीं है कुछ भी तुमसें, जो जो हम पर बीत रहा
नहीं जानते क्या तुम भगवन,जो जो हमने दुःख सहा
किसके आगे जाकर रोएं,किससें जाकर अरज करें
छोड़ तुम्हें बतलाओ भगवन,किसकी जाकर शरण गहें
हे परमेश्वर,दीनदयालु,दयासिन्धु प्यारे भगवान
सब गुणराशी, घट घट वासी,संकट नाशी गुण की खान
हाथ जोड़ कर,बड़े प्रेम सें, विनय करूँ सेवक अज्ञान
अति निर्मल मति,गहरी विधा,पूर्ण बल दीजे भगवान
तूं ही नाथ हमारा स्वामी,तूं ही अन्तर्यामी है
तूं ही सर्व गुणों का सागर,तूं ही न्यायी नामी है
बोलिये शंकर भगवान की जय
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