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कार्तिक के भजन,थे तो उठो राणी रुक्मण

                              श्री
                    Kathik maas ka bhajan
 थे तो उठो राणी रुक्मण,करो नि रसोई
म्हे क्यूं  करां ऐ रसोई,म्हारो अंग पसीज
रुक्मण,अंग पसीज,अस्नान करिजे
अस्नान करां तो म्हांन ,लालजी भी देख
रुक्मण,लालजी देख तो, आड़ा पड़दा लगास्यां
झटके उठी राणी रुक्मण,करि है रसोई
हर का चौका दिया,पोता दिया,पुम कलश भर ल्याई
हर का नूत्या देई देवता,करोड़ छत्तीसूं
हर का आया देई देवता,करोड़ छत्तीसूं
हर का जीम्या देई देवता,करोड़ छत्तीसूं
रुक्मण,मंगणो एसो मांगी ऐ राधा,तूँ म्हार मन भाई
म्हार अन्न धन भोत,कांई कछु मांगा
म्हार लाछ र लिछमी भोत,कांई कछु मांगा
म्हार,बेटा पोता भोत,कांई कछु मांगा
म्हे तो एक महीना कातकड रो हर संग मांगा
रुक्मण,मांग्यो म्हारी राधा प्यारी,दियो ऐ न जाव
हर म्हार हिवड़ा मांयलो जीवड़ो म्हांसयुं दियो ऐ न जाव
हर म्हार कोया मांयलो काजळ म्हांसयुं दियो ऐ न जाव
रुक्मण ,कोल बचन कर मांग्यो म्हांसयुं नट्यो ऐ न जाव
रुक्मण ,हर गण्ठजोड कातिक न्हावै
राधा उभा महल म ,मन पिछताव
सुखिया सब कोई होय ज्यो भेण्यो इं जुग म्हांहि
दुखिया कोई मत होय ज्यो भेण्यो ई जुग मांहि
हर की राम रसोई गाव, सदा सुख पाव
हर की कृष्ण रसोई गाव, सदा सुख पाव
कुंवारी गाव जी,घर बर पावे,परणी पुत्तर खिलावे
बूढ़ी गावे जी गंगा न्हावै, सुरग पालकी जाव

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