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कार्तिक के भजन (Utho laal ji bhor bhayi hai...)


                         श्री                           
         
उठो लालजी भोर भयो है, सुर नर मुनि हितकारी
थे उठो न गिरधारी,थार दरशन की बलिहारी
मुखड़ो धोवो बालमुकुन्दा, थे ल्यो माखन का लोवा
अब थारी मात जसोदा आवे,मज्जन छतिसुं ल्याव
माता थारो महिडो खाटो, गुजरी को महिडो मिठो
अब तूँ आज्या ए गुजरी आज्या,लाला न महिडो देज्या
गुज़री हरखी हरखी डोल, लाला न महिडो तोल
लालजी हंसी मसखरी छोड़ो,अंटी स्यूं रुपिया खोलो
अब थान जानी मथुरा वाली,तूं लियां फिर मतवाली
अब थान जाण्या कृष्ण कन्हैया,गोपयां संग रास रचैया
हरि को बाल कलेवो गावै, लख चौरासी टल ज्याव
कंवारी गावै घर बर पावे,जी परणी पुत्तर खिलावे
बूढ़ी गावै गंगा न्हावै, जी सुरग पालकी जावे

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