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बिनायक जी की कहानी


दो देराणी जिठाणी ही। देराणी अमीर ही। जिठाणी गरीब ही। बिंको मोट्यार किं काम कोनी करतो। जिठानी देराणी घरां आटो पिसबा जाती। आटो पिसयां पछ घटी झाडबा को कपड़ो घरां ले ज्यार  पाणी मं घोल आपक धणी टाबरां बो पाणी पा देती। एक दिन देराणी देख ली।बा कपड़ो ले ज्याण कोनि दियो। जेठाणी घरां गई जणा बिंको मोट्यार आटा को पाणी माग्यो। बा बोली आज तो कपड़ो ल्याण कोनि दियो। जणा बिंको मोट्यार बिन पाटो लेर खूब ठोकी। बा लाण मार खार माचा पर सोयगी। बी दिन माही चौथ को बरत हो। आधी रात बिनायक जी म्हाराज आया। आर बिन पूछ्यो," आटा की खुटयोड़ी,पाटा की पिटयोडि किंया सूती है। जणा बा कियो म्हाराज सदा तो आटा को कपड़ो घोल म्हारा धणी टाबरां पा देती। आज म्हारी देराणी कपड़ो ल्यांन कोनि दियो। जको म्हारो घरहालो मन भोत कुटी। इ वास्त सूती हूं बा पूछी थे कुण हो। गणेश जी कियो आज तिल कुटा की चौथ ही। घर घर तिल कुटो खा आयो हूं। मन निमटणु है। कठ निमटुं। बा बोली घर पड़्यो है ,थारी मर्जी हुअ बठ निमट ल्यो। थोड़ी देर मं गणेश जी पाछा पूछ। निमट तो लियो,अब पुंछुं कठ। बा लाण मार खायोडि ही जको बोली म्हार माथा मं पुंछ ल्यो। गणेश जी बोल्या ठीक है। बे आपका बिंक माथा मं पुंछ चल्या गया।दिन उग्यो। जेठाणी उठी ,देख तो सारो घर जगमगाट कर।हिरा पन्ना माणक मोती स्युं घर भरीज ग्यो। हर बिंक माथा पर हिरा को टिको जगमगाट कर।बा बी दिन देराणी घर आटो पिसण गई कोनि। जणा देराणी आपक टाबरां भेजी जावो देखर आवो।आज बढ़ियाजी आया क्यों कोनी। टाबर देख आया। हर कियो बढ़ियाजी तो घर मं घणो ही धन हुग्यो। जद देराणी जार आपकी जेठाणी पुछयो,इतो धन कठ हूं आयो।जणा जेठाणी बोली काल तूं आटा को कपड़ो ल्यांन कोनि दियो जणा थारो जेठ मन पाटा स्यूं भोत कुटी।रात गणेश जी आया। बे पुछयो।आटा की खुटयोडि,पाटा की पिटयोडि सुति क्यूं है।पछ बे बोल्या मं घर घर तिल कुटो खा आयो हूँ निमटुं। मं बोली निमट ल्यो।फेर बे पूछ्यो अब पुंछुं कठ। मं बोली म्हार माथा मं।दिन उग्यो जणा देख्यो घर मं अन्न धन भण्डार भर ग्या। हर माथा मं हिरा को टिको हुग्यो। मन तो गणेश जी म्हाराज टुठया है। इतो सुण देराणी आपक घरां गई। जा आपक मोट्यार केव,थे ही मन पाटा हुं कुटो। बिरो धणी बोल्यो ,तूं जाण बुझ क्यूं मार खाव। बा बोली,नहीं थे मन पाटा हूं कुटो। जणा बिंको मोट्यार बिन कुटी। बा मार खा सोयगी। आधी रात बिनायक जी आया। पूछ्यो पाटा हूँ पिटयोड़ी क्यूं सुति है। जद बा बोली ,म्हाराज म्हारो घरहालो मन कुटी। विनायक जी पूछ्यो,मं निमटुं कठ। बा बोली म्हाराज,बिरो घर तो छोटो सो हो। म्हारो घर तो घणु ही बडो है,बुहारेडो झाड़ेड़ो है। जच जठ निमट ल्यो। थोड़ी देर बाद बिनायक जी पूछ,नीमट तो लियो,अब पुंछुं कठ। बा बोली म्हाराज,बिरो तो माथो धोएडो कोनि हो। म्हारो तो माथो धोएडो है,सुगन्धि को तेल लगायेड़ो है,म्हार माथा मं पुंछ ल्यो। गणेश जी बोल्या ठीक है। वा गणेश जी तो रमता राम हा,रमज्ञा।दुज दिन देराणी जल्दी जल्दी उठी। देख तो सारो घर गन्दगी हुं भरयोड़ो पड़्यो है,बिको माथो भी गन्दगी स्यूं भरग्यो। जद बा भोत घबराय गी। बिनायक जी याद करया। बिनायक जी प्रगट हुग्या। जद बा बोली ,म्हाराज दुभान्त क्यूं करी। बिंक तो हिरा मोती स्यूं घर भर दियो ,म्हार गन्दगी कर दी। जणा बिनायक जी बोल्या,बा तो भोली हर साफ मन की है,थार मन मं कपट हो। बा तो भूख कारण धणी कन ऊं मार खाई। तूं धन की भूखी  खाई। थार घणु ही धन है तो ही धाप कोनि। बा आटा को कपड़ो ले ज्याती बो ही तूं ले ज्याण् कोनि दियो। बा मन की साफ ही जणा बिर धन हुयो। जणा बा बोली ,अब कृपा करो,थारी माया समेटो। जणा गणेश जी बोल्या,थार धन मं स्यूं आधो धन थारी जेठाणी जणा माया समेटु। जणा देराणी आपक धन मं ऊं आधो धन जेठाणी दियो ,बिनायक जी स्यूं माफी मांगी। जद पाछो सब ठीक हुग्यो।हे बिनायक जी म्हाराज,जेठाणी तुठया  बिस्या सन तुठया,देराणी रूठया बिसि कीन ही मत रूठया। घटी है तो पूरी करया,पूरी है तो परवान चडाया।बोलो बिनायक जी म्हाराज की जैI


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