जगत के रंग
क्या देखूं,तेरा
दिद्दार काफी है
क्यों भटकुं गैरों के
दर पे,तेरा
दरबार काफी है!
नहीं चाहिए ये दुनियां
के,निराले रंग
ढ़ंग मुझको ...3
चले आऊँ मैं
खाटू जी,श्याम
श्रंगार काफी है,
जगत के...
जगत के साज
बाजों सें ,हुऐ
है कान अब
बहरे...3
कहाँ जाके सुनु
बन्शी,मधुर वो
तान काफी है,
जगत के...
जगत के रिश्तेदारों
ने बिछाया जाल
माया का...3
तेरे भक्तों सें प्रीति
हो,श्याम परिवार
काफी है,
जगत
के...
जगत की झूटी
रौनक सें,है
आँखे भर गयी
मेरी...3
चले आओ मेरे
मोहन,दरश की
प्यास काफी है,
जगत के...
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